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3- नारदजी ने भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य के पुष्टि के लिए किया भागवत कथा ज्ञानयज्ञ

Jun 18th, 2024 | 8 Min Read
Blog Thumnail

Category: Bhagavat Purana

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Language: Hindi

भक्तिदेवी, ज्ञान और वैराग्य की पुष्टि के लिए जो उपाय भगवान ने आकाशवाणी के माध्यम से बताया था, उसका वास्तविक अर्थ खोजते हुए नारदजी बदरीवन पहुँचे और तपस्या करने का विचार करने लगे। तभी वहाँ उन्हें सनकादि मुनि मिले। सनकादि ऋषि, जो ब्रह्माजी के चार मानस पुत्र - सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार के नाम से प्रसिद्ध हैं, बड़े योगी, बुद्धिमान और विद्वान हैं। देखने में ये पाँच वर्ष के बालक से प्रतीत होते हैं, किंतु वे पूर्वजों के भी पूर्वज हैं। वे सदा वैकुण्ठधाम में निवास करते हैं, निरंतर हरिकीर्तन में लीन रहते हैं, भगवान के लीलामृत का रसास्वादन कर सदा उसी में मस्त रहते हैं और उनके जीवन का एकमात्र आधार भगवत्कथा ही है। 'हरिः शरणम्' (भगवान ही हमारे रक्षक हैं) यह मंत्र उनके मुख में सदैव रहता है, जिससे कालप्रेरित वृद्धावस्था भी उन्हें बाधा नहीं पहुँचाती।

नारदजी ने सनकादि मुनियों से पूछा कि भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की पुष्टि कैसे होगी? तब मुनियों ने बताया कि ऋषियों ने संसार में दुःख निवृत्ति के अनेक मार्ग बताए हैं, लेकिन वे सब कष्टदायी हैं और परिणामस्वरूप स्वर्ग देने वाले हैं। अभी तक भगवान की प्राप्ति करवाने वाला मार्ग गुप्त ही है, और उसे बताने वाला भी भाग्य से ही मिलता है। आकाशवाणी ने जो सत्कर्म के लिए कहा है, उसे हम आपको बताते हैं।

वह आगे समझाते हुए कहते हैं की चार प्रकार के यज्ञ होते हैं:
  1. द्रव्ययज्ञ,
  2. तपोयज्ञ,
  3. योगयज्ञ और 
  4. ज्ञानयज्ञ
ये सब तो स्वर्ग आदि की प्राप्ति कराने वाले कर्मों की ओर ही संकेत करते हैं। लेकिन ज्ञानियों ने ज्ञानयज्ञ को ही सत्कर्म (मुक्तिदायक कर्म) का सूचक माना है। वह श्रीमद्भागवत का पारायण है, जिसका गान शुकादि महानुभावों ने किया है। उसके शब्द सुनने से ही भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को बड़ा बल मिलेगा। इससे ज्ञान-वैराग्य का कष्ट मिट जाएगा और भक्ति को आनंद मिलेगा। जैसे सिंह की गर्जना सुनकर भेड़िये भाग जाते हैं, उसी प्रकार श्रीमद्भागवत की ध्वनि से कलियुग के सारे दोष नष्ट हो जाएंगे।

नारदजी प्रश्न करते हैं, “मैंने वेद, वेदान्त और गीता पाठ करके ज्ञान और वैराग्य को जगाने का प्रयत्न किया पर वह जागे नहीं। ऐसी स्थितिमें श्रीमद्भागवत सुनानेसे वे कैसे जगेंगे? क्योंकि उस कथाके प्रत्येक श्लोक और प्रत्येक पदमें भी वेदोंका ही तो सारांश है।”
वेदोपनिषदां साराज्जाता भागवती कथा ⁠। अत्युत्तमा ततो भाति पृथग्भूता फलाकृतिः ⁠।⁠।
सनकादिने कहा—श्रीमद्भागवतकी कथा वेद और उपनिषदोंके सारसे बनी है⁠। इसलिये उनसे अलग उनकी फलरूपा होनेके कारण वह बड़ी उत्तम जान पड़ती है ⁠।⁠। (भागवत महात्म्य 1-2-67)

एक वृक्ष की जड़ से लेकर हर शाखा में रस होता है, लेकिन जड़, शाखा या पत्ते खाने से वह रस नहीं मिलेगा जो फल खाने से मिलता है। दूध में घी होता है, लेकिन दूध पीने से घी का स्वाद नहीं आता। ईख में खाँड होती है, लेकिन जब तक ईख को तोड़ा नहीं जाता, उसका स्वाद नहीं मिलता। भागवत कथा भी इसी तरह है। सनकादि कहते हैं कि यह भागवतपुराण वेदों के समान है। श्रीव्यासदेव ने इसे भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की स्थापना के लिए लिखा है। पहले जब व्यासदेव खिन्न होकर अज्ञान के समुद्र में डूब रहे थे, तब नारदजी ने उन्हें चार श्लोकों में इसका उपदेश दिया था। उसे सुनकर उनकी सारी चिंता दूर हो गई थी। ऐसे में, नारदजी, आपको यह सवाल क्यों आ रहा है? आपको श्रीमद्भागवत-पुराण ही सुनाना चाहिए, जो शोक और दुःख का विनाश करता है।

नारदजीने कहा, “महानुभावो! आपका दर्शन जीवके सम्पूर्ण पापोंको तत्काल नष्ट कर देता है और जो संसार-दुःखरूप दावानलसे तपे हुए हैं उनपर शीघ्र ही शान्तिकी वर्षा करता है⁠। आप निरन्तर शेषजीके सहस्र मुखोंसे गाये हुए भगवत्कथामृतका ही पान करते रहते हैं⁠। मैं प्रेमलक्षणा भक्तिका प्रकाश करनेके उद्देश्यसे आपकी शरण लेता हूँ।”⁠
भाग्योदयेन बहुजन्मसमर्जितेन सत्सङ्गमं च लभते पुरुषो यदा वै ⁠। अज्ञानहेतुकृतमोहमदान्धकार- नाशं विधाय हि तदोदयते विवेकः ⁠।⁠।⁠
जब अनेकों जन्मोंके संचित पुण्यपुंजका उदय होनेसे मनुष्यको सत्संग मिलता है, तब वह उसके अज्ञान-जनित मोह और मदरूप अन्धकारका नाश करके विवेक उदय होता है ⁠।⁠ (भागवत महात्म्य 1-2-76)
ज्ञानयज्ञं करिष्यामि शुकशास्त्रकथोज्ज्वलम् ⁠। भक्तिज्ञानविरागाणां स्थापनार्थं प्रयत्नतः ⁠।⁠।
नारद जी कहते हैं- भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को इस्थापित करने के लिए अब में शुकदेव जी द्वारा कही गई भागवत शास्त्र की उज्ज्वल कथा द्वारा ज्ञानयज्ञ करूँगा। ⁠(भागवत महात्म्य 1-3-1)

नारदजी ने पूछा कि यह यज्ञ कहाँ करना चाहिए और इसे सुनने की विधि क्या है। सनकादि ने उन्हें बताया कि हरिद्वार के पास आनंद नाम का घाट है, वहाँ भागवत कथा ज्ञानयज्ञ का आयोजन करें। वहाँ कथा का ऐसा प्रभाव होगा कि भक्ति के दोनों पुत्र, ज्ञान और वैराग्य, वृद्धावस्था से हृष्ट-पुष्ट और युवा हो जाएंगे। जहां भी भागवत कथा होती है, वहाँ भक्ति, ज्ञान और वैराग्य स्वयं ही पहुँच जाते हैं।

इसके बाद सभी गंगा के तट पर पहुँचे। वहां पहुँचने पर भूलोक, देवलोक और ब्रह्मलोक—सभी जगह इस कथा का चर्चा हो गया। सभी भगवत्कथा के रसिक भक्त श्रीमद्भागवत कथा का अमृत पान करने के लिए दौड़-दौड़कर आने लगे। भृगु, वसिष्ठ, च्यवन, गौतम, मेधातिथि, देवल, देवरात, परशुराम, विश्वामित्र, शाकल, मार्कण्डेय, दत्तात्रेय, पिप्पलाद, योगेश्वर व्यास और पराशर, छायाशुक, जाजलि और जह्नु आदि प्रमुख मुनिगण अपने-अपने पुत्र, शिष्य और स्त्रियों सहित बड़े प्रेम से वहाँ आए। इनके अलावा वेद, वेदान्त, उपनिषद, मन्त्र, तन्त्र, सत्रह पुराण और छहों शास्त्र भी मूर्तिमान होकर वहाँ उपस्थित हुए। गंगा आदि नदियाँ, पुष्कर आदि सरोवर, कुरुक्षेत्र आदि क्षेत्र, सभी दिशाएँ, दण्डक आदि वन, हिमालय आदि पर्वत, देव, गन्धर्व और दानव आदि भी कथा सुनने चले आए। जो लोग अपने मान-प्रतिष्ठा के कारण नहीं आए थे, महर्षि भृगु उन्हें समझा-बुझाकर लाए।

कथा सुनाने के लिए सनकादि ऋषि नारदजी के दिए हुए श्रेष्ठ आसन पर विराजमान हुए। उस समय सभी श्रोताओं ने उनकी वन्दना की। श्रोताओं में वैष्णव, विरक्त, संन्यासी और ब्रह्मचारी लोग आगे बैठे और उन सबके आगे नारदजी विराजमान हुए। एक ओर ऋषिगण, एक ओर देवता, एक ओर वेद और उपनिषद आदि तथा एक ओर तीर्थ बैठे, और दूसरी ओर स्त्रियाँ बैठीं। उस समय चारों ओर जय-जयकार और शंखों की ध्वनि होने लगी और अबीर-गुलाल, खील और फूलों की खूब वर्षा होने लगी। कुछ देवता श्रेष्ठ विमानों पर चढ़कर वहाँ बैठे हुए सभी लोगों पर कल्पवृक्ष के पुष्पों की वर्षा करने लगे।

सनकादि ऋषि नारदजी को भागवत महापुराण की महिमा बताते हैं - यह कथा जन्मों के पुण्यों के फलस्वरूप प्राप्त होती है। इसे सुनने के लिए कोई नियम नहीं है। इसे कभी भी सुना जा सकता है। कलियुग में मनुष्य अधिक समय नियमों में बंधकर नहीं रह सकता, इसलिए सप्ताह का प्रावधान किया गया है। जो फल योग, तप और समाधि से प्राप्त नहीं हो सकता, वह भागवत कथा सुनने से प्राप्त होता है। यह यज्ञ, व्रत, तीर्थ और ध्यान से भी बढ़कर है।

जब श्रीकृष्ण इस धरा को छोड़कर गोलोक जाने लगे, तब उन्होंने उद्धव को ज्ञानोपदेश दिया। उद्धवजी ने पूछा कि आपके जाने के बाद पृथ्वी पर कलियुग आएगा, तब यह धरती उसका भार कैसे उठाएगी? तब श्रीकृष्ण ने अपनी संपूर्ण शक्ति भागवत में रख दी और अंतर्धान होकर इसमें प्रवेश कर गए। इसलिए भागवत साक्षात भगवान का शब्दमयी रूप है। भागवत का पठन-श्रवण करने से सभी पाप धुल जाते हैं। कलियुग में यही ऐसा धर्म है, जो दुःख, दरिद्रता, दुर्भाग्य और पापों की सफाई कर देता है तथा काम-क्रोधादि शत्रुओं पर विजय दिलाता है। अन्यथा, भगवान की माया से पीछा छुड़ाना देवताओं के लिए भी कठिन है, मनुष्य तो इसे छोड़ ही कैसे सकते हैं। अतः इससे छूटने के लिए भी सप्ताह श्रवण का विधान किया गया है।

जब सनकादि मुनि सप्ताह श्रवण की महिमा का वर्णन कर रहे थे, वहाँ अपने दोनों पुत्रों को साथ लिए विशुद्ध प्रेमरूपा भक्ति बार-बार ‘श्रीकृष्ण! गोविन्द! हरे! मुरारे! हे नाथ! नारायण! वासुदेव!’ आदि भगवन्नामों का उच्चारण करती हुई प्रकट हो गईं। वह भागवत कथा के अर्थ से निकली थीं। तब भक्ति ने कहा कि मैं कलियुग में नष्टप्राय हो गई थी, परंतु आपने कथा अमृत सुनाकर मुझे पुष्ट कर दिया। अब आप बताइए कि मैं कहाँ रहूँ? सनकादि ने उससे कहा - "तुम भक्तों को भगवान का स्वरूप प्रदान करने वाली, अनन्य प्रेम का सम्पादन करने वाली और संसार रोग को निर्मूल करने वाली हो; अतः तुम धैर्य धारण करके नित्य-निरंतर भक्तों के हृदयों में निवास करो। ये कलियुग के दोष भले ही सारे संसार पर अपना प्रभाव डालें, किन्तु वहाँ तुम पर इनकी दृष्टि भी नहीं पड़ेगी।"

इस प्रकार उनकी आज्ञा पाते ही भक्ति तुरन्त भगवद्‌भक्तों के हृदयों में जा विराजीं। जिनके हृदय में एकमात्र श्रीहरि की भक्ति निवास करती है, वे त्रिलोकी में अत्यन्त निर्धन होने पर भी परम धन्य हैं; क्योंकि इस भक्ति की डोरी से बँधकर साक्षात भगवान भी अपना परमधाम छोड़कर उनके हृदय में आकर बस जाते हैं। सनकादि कहते हैं कि भूलोक में यह भागवत साक्षात परब्रह्म का विग्रह है, हम इसकी महिमा कहाँ तक वर्णन करें। इसका आश्रय लेकर इसे सुनाने से तो सुनने और सुनाने वाले दोनों को ही भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति, प्रेम और दिव्य सेवा प्राप्त हो जाती है। अतः इसे छोड़कर अन्य धर्मों की क्या आवश्यकता है। भक्ति का प्रादुर्भाव हुआ देख श्रीकृष्ण स्वयं वहाँ प्रकट हुए। उनका अद्भुत रूप देखकर सभी जय-जयकार करने लगे। वहाँ बैठे किसी को भी अपनी सुध नहीं रही। तब नारदजी ने कहा कि कलियुग में निःसंदेह भागवत कथा के समान कल्याण का दूसरा कोई साधन नहीं। कृपया यह बताइए कि इसके श्रवण से संसार में कौन-कौन लोग पवित्र हो जाते हैं। तब सनकादि मुनि आत्मदेव, गोकर्ण और धुन्धुकारी की कथा सुनाते हैं।

सारांश: JKYog India Online Class- श्रीमद्भागवत कथा [हिंदी]- 17.06.2024