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80- कृष्ण का यादव वंश और पांडव–कौरव का कुरु वंश: आपसी संबंध और वंशावली

Oct 2nd, 2025 | 8 Min Read
Blog Thumnail

Category: Bhagavat Purana

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Language: Hindi

श्रीमद्भागवत महापुराण- स्कन्ध: 9 अध्याय: 22-24

श्रीशुकदेवजी परीक्षित से  कहते हैं की  ययाति के पाँच में से सबसे छोटा पुत्र पुरु से आगे अजमीढ वंश से दिवोदास का पुत्र मित्रेयु हुआ। उससे च्यवन, सुदास, सहदेव और सोमक उत्पन्न हुए। सोमक के सौ पुत्रों में सबसे छोटा पृषत था, जिससे द्रुपद हुए। द्रुपद की पुत्री द्रौपदी और पुत्र धृष्टद्युम्न हुए। धृष्टद्युम्न का पुत्र धृष्टकेतु हुआ। यही वंश आगे पांचाल कहलाया। 

पुरुवंश में ही जन्मे संवरण ने सूर्यपुत्री तपती से विवाह किया और उनके गर्भ से कुरु हुए, जो कुरुक्षेत्र के स्वामी बने। कुरु वंश से आगे शंतनु हुए।

पुरु से बना कुरुवंश में हुए पांडव और कौरव।

  • शंतनु के भाई देवापि ने सन्यास ले लिया, इसलिए राज्य शंतनु को मिला।
  • शंतनु ने गंगा से विवाह किया और उनसे भीष्म का जन्म हुआ। भीष्म परम धर्मज्ञ और पराक्रमी हुए। वे गुरु परशुराम तक को युद्ध में संतुष्ट करने वाले महानायक थे।
  • शंतनु की दूसरी पत्नी सत्यवती से चित्रांगद और विचित्रवीर्य हुए।
  • विचित्रवीर्य की मृत्यु के बाद सत्यवती के कहने पर व्यासजी ने नियोग से धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर उत्पन्न किए।
धृतराष्ट्र और गांधारी से कौरव हुए, जिनमें सबसे बड़ा दुर्योधन था। पांडु से पांडव हुए जिनमें  युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव हुए

पांडव और द्रौपदी से पाँच पुत्र हुए। अर्जुन और सुभद्रा से अभिमन्यु हुआ, और अभिमन्यु से परीक्षित का जन्म हुआ। परीक्षित को अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से केवल श्रीकृष्ण ने बचाया।

परीक्षित के पुत्र जनमेजय हुए। उन्होंने नागों के नाश के लिए सर्पसत्र यज्ञ किया। आगे उनके वंशजों में क्षेमक तक यह चन्द्रवंश चला और कलियुग में समाप्त हुआ।

यदु वंश में हुए श्रीकृष्ण, बलराम, उद्धव आदि यादव।

ययाति का सबसे बड़ा पुत्र  यदु के कारण यह वंश यादव कहलाया। आगे इसमें कई शाखाएँ बनीं: मधु, वृष्णि, अन्धक, भोज, शूरसेन इत्यादि।
मधु शाखा
  • यदु से आगे → मधु।
  • मधु के सौ पुत्र हुए, उनमें सबसे बड़ा था वृष्णि।
  • इन्हीं से वंश कहलाया: वृष्णि वंश, जिसे वार्ष्णेय, माधव भी कहा गया।
वृष्णि शाखा
  • वृष्णि → श्वफल्क → अक्रूर (कृष्ण के परम भक्त, बलराम की माता रोहिणी के भाई, अतः कृष्ण के मामा)।
  • वृष्णि → शिनि → सात्यकि (युयुधान) (कृष्ण का  चचेरा भाई, महाभारत युद्ध में पांडवों का समर्थक)।
  • वृष्णि → हृदीक → कृतवर्मा (कृष्ण का चचेरा भाई, महाभारत युद्ध में कौरवों का समर्थक)।
  • वृष्णि से  आगे  शूरसेन, अन्धक और भोज जैसी शाखाएँ निकलीं।
अन्धक शाखा
  • आहुक → दो पुत्र: देवक और उग्रसेन
  • देवक की पुत्री देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ।
    • देवकी से: पहले छह पुत्र (कंस ने मार डाले),
    • सातवाँ: बलराम (गर्भ स्थानान्तर से रोहिणी के गर्भ में),
    • आठवाँ: श्रीकृष्ण,
    • पुत्री: सुभद्रा।
  • उग्रसेन का पुत्र था कंस (जिसका वध कृष्ण ने किया)। देवकी  कंस  की  चचेरी  बहन थी।
शूरसेन शाखा
  • शूरसेन → वसुदेव (जिनको  आनकदुन्दुभि भी  कहते  हैं), देवभाग, उपदेश, परिजात आदि कई भाई हुए।
  • देवभाग के पुत्र उद्धव हुए जो कृष्ण का चचेरा भाई, परम सखा और मित्र  थे।
  • वसुदेव की आठ पत्नियाँ थीं। प्रमुख:
    • देवकी (अन्धक वंश) → कृष्ण, सुभद्रा।
    • रोहिणी (वृष्णि वंश) → बलराम, गद आदि।
  • शूरसेन की पुत्री कुन्ती (पृथा) को राजा भोज ने गोद लिया → वही पांडवों की माता बनीं।
  • अन्य पुत्रियाँ:
    • श्रुतश्रवा → दमघोष की पत्नी → पुत्र शिशुपाल
    • श्रुतकीर्ति → कैकय नरेश की पत्नी → पाँच कैकय भाई।
    • श्रुतदेवा → करूष नरेश की पत्नी → पुत्र दन्तवक्त्र
    • राजाधिदेवी → अवन्ती नरेश की पत्नी → पुत्र विन्द व अनुविन्द।
भोज शाखा
  • विदर्भ → चेदि वंश → दमघोष → शिशुपाल।

अनु वंश की वंशावली

ययाति के चौथे पुत्र अनु के तीन पुत्र हुए → सभानर, चक्षु, परोक्ष।

सभानर की शाखा
  • सभानर → उशीनर।
  • उशीनर → शिबि (धर्मप्रिय त्यागी राजा, जिन्होंने कबूतर के प्राण बचाने हेतु अपना मांस दिया)।
  • शिबि से दो प्रमुख शाखाएँ:
    1. मद्र वंश →
      • यहीं से आगे चलकर माद्री (पांडु  के  पत्नी और  नकुल–सहदेव की जननी) हुईं।
    2. कैकेय वंश →
      • यहीं से पाँच कैकेय भाई हुए, जो पांडवों के साले बने।
    3. करुष  वंश  →
      • वसुदेव की बहन श्रुतदेवा का विवाह करूष नरेश से हुआ उनका  पुत्र  था  दन्तवक्र जो  कृष्ण  से  द्वेष  करता  था  और  उन्ही  के  हाथों  मारा  गया.
तितिक्षु की शाखा
  • तितिक्षु → राजा बलि।
  • बलि की पत्नी से ऋषि दीर्घतमा के द्वारा छह पुत्र उत्पन्न हुए: अंग, वंग, कलिंग, पुंड्र, आंध्र, सुह्म
  • इन छहों नाम पर पूर्व भारत के प्रसिद्ध राज्य बने।
अंग वंश
  • अंग वंश से प्रसिद्ध राजा रोमपाद हुए (अयोध्या के दशरथ के मित्र)।
  • आगे → जयद्रथ (महाभारत युद्ध में कौरव पक्ष का योद्धा, अभिमन्यु-वध में प्रमुख)।
  • जयद्रथ की पत्नी → दुशला (धृतराष्ट्र–गांधारी की पुत्री)।
  • जयद्रथ के वंश में → अधिरथ।
  • अधिरथ ने गंगातट से मिले शिशु को गोद लिया → वही कर्ण (वास्तव में कुन्ती का पुत्र, पर अंगवंश में पले)।
चेदि वंश 
  • विदर्भ से आगे चेदि वंश निकला।
  • चेदि नरेश दमघोष की पत्नी श्रुतश्रवा (वसुदेव की बहन) थीं।
  • इनके पुत्र → शिशुपाल
  • शिशुपाल कृष्ण का बुवा का भाई और महाशत्रु हुआ।

तुर्वसु वंश की वंशावली

ययाति के दूसरे पुत्र तुर्वसु से → वह्नि → गोभानन → त्रिभानन → करन्धम → मरुत हुए।
मरुत संतानहीन थे। उन्होंने पुरुवंशी दुष्यन्त (शकुन्तला के पति, भरत के पिता) को अपना पुत्रवत स्वीकार किया। इसी से  यह  वंश  पुरूवंश  में  विलीन  हो  गया।

द्रुह्य वंश की वंशावली

ययाति के तीसरे पुत्र द्रुह्य के वंश से गान्धार देश उत्पन्न हुआ। गांधार नरेश सुबाल की पुत्री गांधारी धृतराष्ट्र की पत्नी और  कौरवों की माता बनी। उनके पुत्र शकुनि महाभारत का प्रसिद्ध कूटनीतिक पात्र, कौरवों का मामा था।

इस तरह ययाति के पाँच पुत्रों से  निकले महाभारत के सभी पात्र:
  1. यदु → कृष्ण, बलराम, यादवगण।
  2. तुर्वसु → वंश आगे चलकर पुरुवंश में मिला।
  3. द्रुह्य → गांधारी, शकुनि।
  4. अनु → शिशुपाल, जयद्रथ, कर्ण, माद्री, कैकेय भाई, दन्तवक्र।
  5. पुरु → पांडव, कौरव।

राजा शिबि का त्याग

अनु के पुत्र की वंश परंपरा में राजा उशीनर हुए, जिनके पुत्र शिबि अपने त्याग और धर्मनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध हुए।

एक दिन एक कबूतर भय से कांपता हुआ उनकी गोद में आ गिरा। उसके पीछे एक बाज़ आया और बोला, “यह मेरा शिकार है। इसे मुझे दे दो, नहीं तो मैं भूख से मर जाऊँगा।”

शिबि ने उत्तर दिया, “इस पक्षी ने मेरी शरण ली है। मैं इसे नहीं सौंप सकता। यदि तुझे आहार चाहिए, तो मैं अपना मांस दे दूँगा।”
तुरंत एक तराजू मंगाई गई। एक तरफ कबूतर को बिठाया गया, दूसरी तरफ शिबि अपना मांस काट–काटकर रखने लगे। लेकिन कबूतर का भार हर बार अधिक हो जाता। अंत में शिबि स्वयं ही तराजू पर बैठ गए, अपना जीवन समर्पित करने के लिए।

तभी देवता प्रकट हुए और बोले, “यह एक परीक्षा थी।” उन्होंने राजा शिबि की प्रशंसा की और कहा,  “तुम्हारा धर्म और त्याग को युगों–युगों तक स्मरण किया जाएगा।”

रोमपाद और ऋष्यश्रृंग की कथा

कश्यप ऋषि के पुत्र विभाण्डक ऋषि एक बार महाह्रद में गये। वहाँ उन्होंने सबसे सुंदर अप्सरा उर्वशी को देखा। उसकी रूपमाधुरी से आकृष्ट होकर उनके वीर्यपात हुआ, जो नदी में गिर पड़ा। नियति से, एक मृगी (जो वास्तव में शापित अप्सरा थी) ने उस वीर्य को ग्रहण कर लिया। ऋषि की दिव्य शक्ति से वह गर्भवती हो गई।

समय आने पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसके छोटे-छोटे शृंग (सींग) थे। पुत्र के जन्म के साथ ही मृगी शापमुक्त होकर स्वर्ग लौट गई। उस बालक का नाम पड़ा ऋष्यशृंग

विभाण्डक ऋषि, स्त्रियों से उत्पन्न अपने पूर्व अनुभव को स्मरण कर, अपने पुत्र ऋष्यशृंग को समाज से पूर्णतः दूर जंगल में ही पालन-पोषण करने लगे। ऋष्यशृंग ने स्त्रियों का नाम तक नहीं सुना। ब्रह्मचर्य का कठोर पालन करते हुए उसने तपस्या से अद्भुत शक्ति अर्जित की।

इसी समय अंग देश में राजा रोमपाद के राज्य में भयंकर अकाल पड़ा और वर्षा बंद हो गई। मुनियों ने कहा, “जब तक महातपस्वी ऋष्यशृंग इस राज्य में पधारेंगे नहीं, वर्षा नहीं होगी।”

राजा रोमपाद ने उपाय खोजा। उन्होंने स्त्रियों और गणिकाओं को भेजा। उनके गीत, कोमल व्यवहार और मधुर वाणी से अछूते ऋष्यशृंग मोहित हो गए और उनके साथ अंग देश आ पहुँचे। जैसे ही उन्होंने उस भूमि पर पाँव रखा, मेघ उमड़ पड़े और वर्षा होने लगी।

अब रोमपाद को भय हुआ कि कहीं विभाण्डक ऋषि इस छल से क्रुद्ध होकर शाप न दे दें। उन्हें प्रसन्न करने के लिए रोमपाद ने अपनी पुत्री शान्ता का विवाह ऋष्यशृंग से कर दिया। शान्ता वास्तव में अयोध्या नरेश दशरथ की पुत्री थीं, जिन्हें रोमपाद ने गोद लिया था।

बाद में जब दशरथ को संतान की इच्छा हुई, तो ऋष्यशृंग ने ही पुत्रकामेष्टि यज्ञ संपन्न कराया। इसी यज्ञ के फलस्वरूप दशरथ को चार पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की प्राप्ति हुई।

सहस्रबाहु अर्जुन

यदु के वंश में कार्तवीर्य अर्जुन (सहस्रबाहु अर्जुन) हुआ। उन्होंने दत्तात्रेयजी की भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर उसे अष्टसिद्धियाँ (अणिमा, लघिमा आदि योगसिद्धियाँ) और अपार बल प्रदान किया।

सहस्रबाहु अर्जुन का शासन न्याय और दानशीलता के लिए प्रसिद्ध था। उसके महल का द्वार  कभी बंद नहीं होता था। जो भी याचक आता, उसे दान अवश्य मिलता। वह प्रजा का पालन पिता समान करता था।

पर कालांतर में उसका साम्राज्य और अपार ऐश्वर्य देखकर उसमें धीरे-धीरे अहंकार और मद आ गया। वह सोचने लगा कि उसकी शक्ति अजेय है। इसी कारण उसने ब्राह्मणों और ऋषियों पर अत्याचार करने शुरू किये। अंततः उसका वध भगवान परशुरामजी के हाथों हुआ।

श्रीमद् भागवत के नवम् स्कन्द के अंत में शुकदेवजी परीक्षित को कहते हैं कि जब-जब धर्म घटता और पाप बढ़ता है, तब भगवान श्रीहरि अवतार लेते हैं। असुरों के अत्याचार से पृथ्वी भारी हो गयी थी, तब भगवान मधुसूदन बलरामजी के साथ अवतीर्ण हुए।

श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण की कथाएँ इतनी पवित्र हैं कि उनका गान और श्रवण करने से ही मनुष्य के दुःख और अज्ञान मिट जाते हैं। उनका रूप, मुस्कान और वचन सबको आनंद से भर देते थे।

भगवान मथुरा में जन्मे, गोकुल में पले, फिर मथुरा और द्वारका में असुरों का वध किया, विवाह किए और धर्म की मर्यादा यज्ञों द्वारा स्थापित की। महाभारत युद्ध में अर्जुन के सारथी बनकर पृथ्वी का भार हल्का किया और अंत में उद्धव को ज्ञान देकर अपने परमधाम लौट गए।

सारांश: JKYog India Online Class- श्रीमद् भागवत कथा [हिन्दी]- 14.09.2025