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84- श्रीकृष्ण के द्वारा पूतना का उद्धार

Oct 30th, 2025 | 10 Min Read
Blog Thumnail

Category: Bhagavat Purana

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Language: Hindi

श्रीमद्भागवत महापुराण- स्कन्ध: 10 अध्याय: 6-7

श्रीशुकदेवजी परीक्षित् से कहते हैं की नन्दबाबा जब मथुरासे चले, तब रास्तेमें विचार करने लगे कि वसुदेवजीका कथन झूठा नहीं हो सकता। इससे उनके मनमें उत्पात होनेकी आशंका हो गयी। तब उन्होंने मन-ही-मन ‘भगवान ही एक मात्र आश्रय हैं, वे ही रक्षा करेंगे’ ऐसा निश्चय किया।

पूतना नामकी एक बड़ी क्रूर राक्षसी थी। उसका एक ही काम था-बच्चोंको मारना। कंसकी आज्ञासे वह नगर, ग्राम और अहीरोंकी बस्तियों में बच्चोंको मारनेके लिये घूमा करती थी।
जहाँके लोग अपने प्रतिदिनके कामोंमें राक्षसोंके भयको दूर भगानेवाले भगवान्के नाम, गुण और लीलाओंका श्रवण, कीर्तन और स्मरण नहीं करते-वहीं ऐसी राक्षसियोंका बल चलता है।

वह पूतना आकाशमार्गसे चल सकती थी और अपनी इच्छाके अनुसार रूप भी बना लेती थी। एक दिन नन्दबाबाके गोकुलके पास आकर उसने मायासे अपनेको एक सुन्दरी युवती बना लिया और गोकुलके भीतर घुस गयी ।

उसने बड़ा सुन्दर रूप बनाया था। उसकी चोटियोंमें बेलेके फूल गुंथे हुए थे। सुन्दर वस्त्र पहने हुए थी। जब उसके कर्णफूल हिलते थे, तब उनकी चमकसे मुखकी ओर लटकी हुई अलकें और भी शोभायमान हो जाती थीं। उसके नितम्ब और छाती ऊँचे-ऊँचे थे और कमर पतली थी।
वह अपनी मधुर मुस्कान और नैनों के तीर जैसे कटाक्षों से व्रजवासियों का मन मोह रही थी। जब गोपियों ने उस सुंदर स्त्री को हाथ में कमल लिए आते देखा, तो वे कहने लगीं, “लगता है जैसे स्वयं लक्ष्मीजी अपने पति के दर्शन करने आ रही हों।”

पूतना बच्चों के लिए किसी ग्रह की तरह थी। वह यहाँ-वहाँ बच्चों को ढूँढती हुई नन्द बाबा के घर में बिना सोचे-समझे चली आई। वहाँ उसने देखा कि बालक श्रीकृष्ण बिस्तर पर सो रहे हैं।
शुकदेवजी कहते हैं कि भगवान् श्रीकृष्ण दुष्टोंके काल हैं। परन्तु जैसे आग राखकी ढेरीमें अपनेको छिपाये हुए हो, वैसे ही उस समय उन्होंने अपने प्रचण्ड तेजको छिपा रखा था ।

भगवान् श्रीकृष्ण चर-अचर सभी प्राणियोंके आत्मा हैं। इसलिये उन्होंने उसी क्षण जान लिया कि यह बच्चोंको मार डालनेवाला पूतना-ग्रह है और अपने नेत्र बंद कर लिये। जैसे कोई पुरुष भ्रमवश सोये हुए साँपको रस्सी समझकर उठा ले, वैसे ही अपने कालरूप भगवान् श्रीकृष्णको पूतनाने अपनी गोदमें उठा लिया ।

पूतना का हृदय बहुत कपटी और दुष्ट था, लेकिन ऊपर से वह इतनी मधुर और सुंदर दिखाई दे रही थी कि कोई भी उसे देखकर धोखा खा जाए। जैसे मखमली म्यान में तेज़ धारवाली तलवार छिपी हो, वैसे ही उसके भीतर की कपटता उसके मीठे व्यवहार के पीछे छिपी थी। वह एक भद्र महिला जैसी लग रही थी, इसलिए जब रोहिणी और यशोदा जी ने उसे घर में आते देखा, तो उसके सौंदर्य और शालीनता से वे कुछ क्षण के लिए स्तब्ध रह गईं। उन्होंने उसे रोकने की बजाय चुपचाप देखा, क्योंकि उन्हें कुछ भी संदेह नहीं हुआ।

उधर वह भयानक राक्षसी पूतना बालक श्रीकृष्ण को गोद में उठाकर उनके मुख में अपना स्तन लगाने लगी। उस स्तन पर उसने भयंकर विष लगाया हुआ था, जो किसी भी बालक के लिए प्राणघातक था। परंतु भगवान श्रीकृष्ण ने उस समय क्रोध को अपना साथी बनाया और अपने दोनों हाथों से पूतना के स्तनों को जोर से दबा दिया। वे उसका दूध पीने लगे, और उसी समय उनका क्रोध उसके प्राणों को पीने लगा। अब पूतना के शरीर में जहाँ-जहाँ प्राण टिके थे, वे सब मर्मस्थान फटने लगे। वह दर्द और भय से चिल्लाने लगी,“अरे छोड़ दे! छोड़ दे! अब बस कर!” 

वह बार-बार अपने हाथ-पैर पटकने लगी और जोर-जोर से रोने लगी। उसके नेत्र उलट गए और उसका पूरा शरीर पसीने से भीग गया। उसकी चीख इतनी भयानक थी कि उसका कंपन पूरे ब्रह्मांड में महसूस हुआ।  पहाड़ काँप उठे, पृथ्वी हिलने लगी, आकाश में ग्रह डगमगाने लगे। सातों पाताल और सभी दिशाएँ उसकी गर्जना से गूँज उठीं। लोग घबराकर सोचने लगे कि कहीं वज्रपात न हो जाए, और भय से कई लोग धरती पर गिर पड़े।

इस प्रकार राक्षसी पूतना के स्तनों में इतनी भयंकर पीड़ा हुई कि वह अपना भेष और छल अब और नहीं छिपा सकी। वह अपने असली राक्षसी रूप में प्रकट हो गई। उसका विशाल शरीर फैल गया, मुँह फट गया, बाल बिखर गए, और उसके हाथ-पाँव दूर तक फैल गए। जैसे इन्द्र के वज्र से घायल होकर वृत्रासुर धरती पर गिर पड़ा था, वैसे ही पूतना भी बाहर गोशाला में आकर भारी आवाज़ के साथ धरती पर गिर पड़ी।

जब वह गिरी, तो उसका शरीर इतना विशाल था कि गिरते-गिरते उसने अपने चारों ओर लगभग छः कोस (लगभग 48 मील) के क्षेत्र में फैले वृक्षों को कुचल डाला। यह दृश्य देखकर सब लोग आश्चर्य से भर उठे, यह सचमुच एक अत्यंत अद्भुत घटना थी।

पूतनाका शरीर बड़ा भयानक था, उसका मुँह हलके समान तीखी और भयंकर दाढ़ोंसे युक्त था। उसके नथुने पहाड़की गुफाके समान गहरे थे और स्तन पहाड़से गिरी हुई चट्टानोंकी तरह बड़े-बड़े थे। लाल-लाल बाल चारों ओर बिखरे हुए थे। आँखें अंधे कूएँके समान गहरी नितम्ब नदीके करारकी तरह भयंकर; भुजाएँ, जाँघे और पैर नदीके पुलके समान तथा पेट सूखे हुए सरोवरकी भाँति जान पड़ता था।

पूतनाके उस शरीरको देखकर सबके-सब ग्वाल और गोपी डर गये। उसकी भयंकर चिल्लाहट सुनकर उनके हृदय, कान और सिर तो पहले ही फट-से रहे थे। जब गोपियों ने देखा कि बालक श्रीकृष्ण पूतना की छाती पर निडर होकर खेल रहे हैं, तो वे भय और घबराहट से भर गईं। वे तुरंत दौड़कर वहाँ पहुँचीं और झट से श्रीकृष्ण को अपनी गोद में उठा लिया। उनके मन में डर था कि कहीं उस राक्षसी के स्पर्श से बालक को कोई हानि न पहुँची हो।

फिर यशोदा और रोहिणी के साथ सभी गोपियों ने बालक श्रीकृष्ण की रक्षा के लिए पारंपरिक उपाय करने शुरू किए। उन्होंने पहले उन्हें गोमूत्र से स्नान कराया, फिर गो-रज उनके शरीर पर लगाई, और उसके बाद गाय के गोबर से बारहों अंगों पर लेप कर, भगवान के केशव आदि पवित्र नामों का उच्चारण करके उनकी रक्षा की।

इसके बाद गोपियों ने स्वयं आचमन किया, फिर ‘अज’ आदि ग्यारह बीज मंत्रों का जाप करते हुए अपने शरीर के अंगों पर अंगन्यास और करन्यास किया (यानी पवित्र मंत्रों से अपने हाथ और अंगों को ऊर्जा से भर लिया)। फिर उन्होंने वही बीज मंत्र श्रीकृष्ण के शरीर पर प्रयोग किए, ताकि उनके प्रत्येक अंग की दैवी सुरक्षा हो जाए।

गोपियाँ भगवान श्रीकृष्ण की हर दिशा और हर अंग की रक्षा के लिए भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों का आह्वान करती हैं। वे प्रार्थना करती हैं कि भगवान केशव, नारायण, माधव, हृषीकेश आदि रूपों से श्रीकृष्ण के शरीर, मन, बुद्धि, प्राण और इन्द्रियों की रक्षा करें। वे चाहती हैं कि कोई भी राक्षसी, ग्रह, भूत-प्रेत या रोग उनके प्रिय बालक को हानि न पहुँचा सके, सब भगवान के नाम से भयभीत होकर नष्ट हो जाएँ।

श्रीशुकदेवजी परीक्षित से बोले की माँ यशोदा ने अपने पुत्र को स्तनपान कराया और फिर उसे प्यार से पालने में सुला दिया। उसी समय नन्दबाबा और उनके साथी गोप मथुरा से लौटकर गोकुल पहुँचे। वहाँ उन्होंने जब पूतना का भयानक शव देखा तो वे चकित रह गए। वे कहने लगे, “यह तो बहुत आश्चर्य की बात है! अवश्य ही वसुदेवजी के रूप में कोई ऋषि जन्मे हैं, या वे पिछले जन्म में कोई योगी रहे होंगे, क्योंकि उन्होंने जो संकेत दिए थे, वही सब यहाँ घटित हो रहा है।”

तब तक व्रजवासियों ने कुल्हाड़ी से पूतना के शरीर के टुकड़े-टुकड़े किए और उसे गोकुल से बाहर ले जाकर लकड़ियों पर रखकर जला दिया। जब उसका शरीर जलने लगा, तो उसमें से अगर जैसी सुगंध निकली, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने उसका विषयुक्त दूध पिया था, जिससे उसके सारे पाप तत्काल नष्ट हो गए।

पूतना राक्षसी थी, उसका काम बच्चों को मार डालना और उनका रक्त पीना था। उसने श्रीकृष्ण को भी मारने के इरादे से स्तनपान कराया था, फिर भी भगवान की कृपा से उसे वही परमगति प्राप्त हुई जो महान सत्पुरुषों को मिलती है। इसलिए, जो भक्त भगवान श्रीकृष्ण को सच्चे प्रेम और श्रद्धा से माँ के समान अपनाकर अपनी प्रिय वस्तुएँ या उन्हें प्रसन्न करनेवाली वस्तुएँ अर्पित करते हैं, उन्हें तो कहीं अधिक श्रेष्ठ फल प्राप्त होता है। भगवान के चरणकमल ब्रह्मा, शिव और अन्य देवताओं द्वारा भी पूजित हैं; वही चरण पूतना के शरीर पर पड़े थे, जिनसे उसके पाप मिट गए।

भले ही वह राक्षसी थी, फिर भी उसे मातृत्व की सर्वोच्च गति मिली। तो जिन गोपियों और गायों के दूध को भगवान ने प्रेमपूर्वक पिया, उनके सौभाग्य की तो बात ही क्या! भगवान श्रीकृष्ण ही परमात्मा हैं, वे मुक्ति देने वाले और सब कुछ प्रदान करने वाले हैं। उन्होंने व्रज की गायों और गोपियों का वह दूध पिया जो उनके प्रति मातृस्नेह के कारण अपने आप झरता था। ऐसी गायें और गोपियाँ, जो नित्य श्रीकृष्ण को अपने पुत्र के रूप में देखती हैं, वे जन्म-मरण के चक्र में फिर कभी नहीं फँसतीं।

नन्दबाबा और व्रजवासी जब गोकुल लौट रहे थे, तो उन्हें रास्ते में चिता के धुएँ की सुगंध महसूस हुई। वे बोले, “यह कैसी सुगंध है?” और जब गोकुल पहुँचे, तो गोपियों ने उन्हें पूतना के आने से लेकर उसके मारे जाने तक की पूरी कथा सुना दी। यह सुनकर वे सब अत्यंत आश्चर्यचकित और आनंदित हुए कि श्रीकृष्ण सकुशल हैं। नन्दबाबा ने अपने लाल को गोद में उठाया, बार-बार उसका सिर सूँघा और मन ही मन अत्यंत प्रसन्न हुए।

पूतना उद्धार की कथा सुनने के पश्चात राजा परीक्षित ने विनम्रता से कहा, “प्रभो! सर्वशक्तिमान भगवान श्रीहरि अनेक अवतार लेकर अनगिनत सुंदर और मधुर लीलाएँ करते हैं, जो मेरे हृदय को अत्यंत प्रिय लगती हैं। उनके चरित्रों का श्रवण करने से मनुष्य का हृदय शुद्ध हो जाता है, विषयों की तृष्णा मिट जाती है, और भगवान के चरणों में भक्ति तथा भक्तों के प्रति प्रेम उत्पन्न होता है। यदि आप मुझे इसके योग्य मानते हैं, तो कृपया भगवान की वे मनोहर लीलाएँ सुनाइए।”

श्रीशुकदेवजी ने कहा — परीक्षित! एक बार भगवान श्रीकृष्ण के करवट बदलने का उत्सव मनाया जा रहा था, उसी दिन उनका जन्म नक्षत्र भी था। घर में गाना-बजाना और खुशी का माहौल था। स्त्रियाँ एकत्र होकर उत्सव मना रही थीं और यशोदा मैया स्वयं अपने पुत्र का अभिषेक कर रही थीं। ब्राह्मण मंत्रोच्चारण करके आशीर्वाद दे रहे थे। ब्राह्मणों का खूब अन्न, वस्त्र, माला, गायें और अन्य वस्तुएँ दान में दीं। जब सब पूजा-विधि पूरी हो गई, तो उन्होंने देखा कि उनके लल्ला की आँखों में नींद है, इसलिए वे प्यार से उन्हें पालने में सुलाकर स्वयं अतिथियों की सेवा में लग गईं।

थोड़ी देर बाद श्रीकृष्ण की नींद खुली और वे स्तनपान के लिए रोने लगे, लेकिन यशोदा जी उत्सव में व्यस्त थीं, इसलिए उन्हें यह सुनाई नहीं दिया। तब शिशु श्रीकृष्ण रोते-रोते अपने पैर हिलाने लगे। वे एक छकड़े (बैलगाड़ी जैसी गाड़ी) के नीचे लेटे थे, जिसके ऊपर दूध-दही से भरी मटकियाँ रखी थीं। श्रीकृष्ण का छोटा-सा पाँव लगते ही वह भारी छकड़ा उलट गया। सारी मटकियाँ टूट गईं, पहिए और लकड़ी के हिस्से बिखर गए।
यह देखकर सब लोग घबरा गए — यशोदा, रोहिणी, नंदबाबा और सभी व्रजवासी स्त्रियाँ आश्चर्य से कहने लगीं, “यह छकड़ा अपने आप कैसे उलट गया?” कोई कारण समझ नहीं आ रहा था। 

तभी वहाँ खेलते बच्चों ने कहा, “अरे! यह तो कृष्ण ने ही अपने पैर से ठोकर मारकर उलट दिया है।” पर गोपों ने इसे बालकों की बात समझकर विश्वास नहीं किया, क्योंकि वे नहीं जानते थे कि यह बालक स्वयं सर्वशक्तिमान भगवान है।

यशोदा मैया को लगा कि यह किसी ग्रह या अशुभ प्रभाव का संकेत है। उन्होंने श्रीकृष्ण को गोद में लिया, ब्राह्मणों से वैदिक मंत्रों द्वारा शांति पाठ कराया, और फिर उन्हें स्तनपान कराया। 
गोपों ने छकड़े को सीधा कर फिर से सारा सामान रख दिया। ब्राह्मणों ने हवन करके भगवान और उस छकड़े की पूजा की। नंदबाबा ने यह सोचकर कि ब्राह्मणों का आशीर्वाद कभी व्यर्थ नहीं जाता, अपने पुत्र को गोद में लिया और वैदिक मंत्रों से अभिषेक कराया। उन्होंने ब्राह्मणों को उत्तम भोजन कराया और आशीर्वाद प्राप्त किया। पुत्र की दीर्घायु और समृद्धि की कामना से उन्होंने उन्हें बहुत-सी सजी हुई गौएँ दान में दीं।

कुछ समय बाद, एक दिन यशोदा जी अपने प्यारे लल्ला को गोद में लिए दुलार कर रही थीं, तभी अचानक श्रीकृष्ण का शरीर चट्टान जैसा भारी हो गया। यशोदा जी उसे उठाए न रह सकीं और उन्होंने उन्हें ज़मीन पर बिठा दिया। इस अजीब घटना से वे बहुत हैरान हो गईं। फिर उन्होंने भगवान पुरुषोत्तम को प्रणाम किया और घर के कामों में लग गईं।

सारांश: JKYog India Online Class- श्रीमद् भागवत कथा [हिन्दी]- 27.10.2025