तनाव आधुनिक जीवन का एक व्यापक लक्षण है। जैसे जैसे तकनीकि विकास के द्वारा विश्व की गति बढ़ती जा रही है, वैसे वैसे परिणाम स्वरूप लोग अधिकाधिक तनाव का अनुभव करते चले जा रहे हैं। ये तनाव कंपनी के बड़े अधिकारियों में ज्यादा रहता है। तनाव का हमारे स्वास्थ पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। मेडिकल साइंस का कहना है कि शारीरिक रोगों का ३३% संबंध मानसिक तनाव से होता है।अब प्रश्न यह है कि ये तनाव क्यों होता है और इससे छुटकारा कैसे पाया जाय। इसे एक व्यक्ति की कहानी से समझने का प्रयास करते हैं।
१९ वी शताब्दी में अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में विश्व का धनाढ्य व्यक्ति जॉन रॉकफेलर रहता था। वह स्टैंडर्ड ऑयल कॉर्पोरेशन का चेयरमैन था। एक दिन उसे अपने व्यवसाय संबंधी विशेष निर्णय लेना था।कुछ सामान उसे ह्यूस्टन से ट्रेन द्वारा शिकागो भेजना था। निर्णय ये लेना था कि सामान बीमा करा के भेजे या बिना बीमा करे ही भेजा जाय। बीमा कराने में बड़ी धन राशि खर्च होनी थी , उसने निर्णय लिया कि सामान बिना बीमा कराए ही भेजा जाए।निश्चित समय पर पूरा सामान ट्रेन में चढ़ा दिया गया और ट्रेन चल पड़ी।कुछ समय पश्चात उसे खबर मिली कि रास्ते में बहुत भयानक तूफान आ गया है।
अब उसे अपने सामान के नष्ट होने का भय सताने लगा और बीमा नहीं कराने के अपने निर्णय पर पश्चाताप होने लगा। धनी होने के कारण लोगों में उसका प्रभाव था, उसने अपने प्रभाव का उपयोग करने का निश्चय किया। उसने बीमा कंपनी से संपर्क किया , हालांकि रात हो चली थी , सारे ऑफिस बंद हो चुके थे , परंतु अपने प्रभाव के कारण रात १२ बजे वह बीमा ऑफिस से बीमा पालिसी लेकर घर पहुंचा और निश्चिंत हो कर सो गया।सुबह उसे पता चला कि ट्रेन बिलकुल ठीक तरह से शिकागो पहुंच गई है और सब सामान भी व्यवस्थित है।उसने व्यर्थ बीमा कराने में धनराशि गंवा दी है।अपनी धन हानि को सोच सोच कर वह तानावग्रस्त हो गया। उसका स्वास्थ खराब रहने लगा। इसका असर उसके व्यवसाय पर भी पड़ने लगा। डॉक्टर ने उसे सलाह दी कि यदि उसने अपनी जीवन शैली परिवर्तित नहीं की तो वह ३ साल से अधिक जीवित नहीं रह पाएगा।
उसने विचार किया और स्वयं को बदलने की ठान ली।वह परोपकार के कार्य में लग गया। उसने रॉकफेलर फाउंडेशन की स्थापना की, जिसके माध्यम से जन सेवा के विभिन्न काम किए और आगे २५ साल तक जीवित रहा।यह १५० साल पुरानी बात है लेकिन अब तो विश्व में फोन, व्हाट्सएप, ईमेल्स आदि के अत्याधिक उपयोग से तनाव सर्वव्यापक सा बन गया है। उसे मिटाने के लिए लोग अनेक प्रकार की तरकीबों का उपयोग करते हैं जैसे योगा,ध्यान, संगीत सुनना, पहाड़ों पर घूमने जाना आदि।ये सब लाभदायक तो हैं क्योंकि किसी भी उपाय से विचारों की गति में कमी होगी तो कुछ मात्रा में शांति की अनुभूति होगी।किंतु ये असली उपाय नहीं है क्योंकि तनाव की उत्पत्ति के कारण का समाधान इन उपायों से हुआ ही नहीं है।जैसे मलेरिया का बुखार मलेरिया की दवा लेने से ठीक होगा न कि बुखार उतरने की दवा लेने से । तनाव क्यों होता है इसका कारण और समाधान श्रीकृष्ण ने गीता में ५००० साल पहले ही बता दिया था। श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हुए विश्व को संदेश देते हैं कि अपना कर्म करो किंतु फल में आसक्ति मत करो। तनाव अधिक परिश्रम से नहीं होता वरन् फलासक्ति के कारण होता है। हमारे हाथ में अपना प्रयास करना है, फल भगवान पर छोड़ देना है।जब हम मात्र अपने प्रयास पर केंद्रित रहेगें तो परिणाम पहले से भी अधिक श्रेष्ठ हो जायेगा। हम अनुभव करते हैं कि जब मन आसक्त होता है तो बुद्धि ठीक ठीक कार्य नहीं करती है, इसलिए भगवान के वाक्य “कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेशु कदाचन ” को दृढ़ करना होगा ।सार यह कि आसक्ति ही तनाव का कारण है और आसक्ति को त्यागने की शिक्षा जो भगवान ने दी है उसका अभ्यास किया जाना चाहिए।