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सद्गुरू कौन है?

Jul 21st, 2024 | 4 Min Read
Blog Thumnail

Category: Spirituality

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Language: Hindi

मनुष्य देह का परम चरम लक्ष्य भगवत प्राप्ति करना है। भगवत प्राप्ति सद्गुरु के  बिना असंभव है। इसके लिए पहले गुरु शब्द का अर्थ समझना होगा। आध्यात्मिक जगत में "गु" शब्द का अर्थ माया का अज्ञान, अंधकार और "रु" शब्द का अर्थ निकालने वाला होता है । जो मायिक अंधकार निकाले और दिव्य ज्ञानरूपी प्रकाश देने में समर्थ हो, उसे गुरु कहते हैं।

गुरु सदा संसार में होते हैं । परंतु सद्गुरु को कैसे खोजा जाय। उन्हें पहचानने का तरीका आना चाहिए । सद्गुरु को पहचानने में बाहरी पैमाना नहीं लगाना चाहिए। कपड़े रंगाने से कोई गुरु नहीं हो जाता या फलाहारी, दूधहारी, पवनाहारी आदि सब बहिरंग दिखावे से गुरु को पहचानना मुश्किल है। महात्मा का मतलब होता है महान आत्मा । शरीर नहीं देखना चाहिए, शरीर तो सभी का पंच महाभूत का एक समान ही है। तो महापुरुष सद्गुरु या महात्मा को पहचानने के कुछ तरीकों पर विचार करते हैं। 

सद्गुरू को कैसे पहचाने?

  1. सबसे पहले यह ध्यान रखें कि सच्चा गुरु संसार नहीं दिया करता । गृहस्थी आसक्ति के कारण धन, प्रतिष्ठा, परिवार रूपी संसार मांगता है और यदा कदा संस्कार वश मिल भी जाता है । ऐसे में दंभियों का तो काम बन जाता है । सच्चा संत वही है जो मनुष्य को समझाएं कि संसार मांगते मांगते अनंत जन्म बीत गए, अब भगवान की भक्ति मांगो, उसी से कल्याण होगा । उस परम आनंद युक्त ईश्वर को प्राप्त करना है । 
  2. दूसरी महत्वपूर्ण बात कि वास्तविक गुरु सिद्धियों का चमत्कार नहीं दिखाया करता है । कुछ लोग तप और योग के द्वारा सिद्धियां प्राप्त कर लेते हैं ।यह सिद्धियां तीन प्रकार की होती है तामसिक राजसिक और सात्विक, जो कि कुछ समय उपयोग करने के बाद समाप्त हो जाती है। नरक की गति वाली तामसिक सिद्धि के चंगुल में भोले भाले लोगों को फंसा लिया जाता है। तपस्या के बल से स्वास्थ्य सुधार या व्यापार में लाभ करना राजसिक सिद्धि कहलाती है।
अणिमा महिमा मूर्तेर्लघिमा प्राप्तिरिन्द्रियै: ।
प्राकाम्यं श्रुतद‍ृष्टेषु शक्तिप्रेरणमीशिता ॥ ४ ॥
  (भागवत 11.15.4)
सात्विक सिद्धि जैसे हल्के हो जाना, पानी पर चलना, भारी हो जाना ,वस्तुएं गायब करना, अंतर्यामी बनकर मन की बातें जान लेना आदि यह सब सात्विक सिद्धि के अंतर्गत आता है। यह सब माया के क्षेत्र की सिद्धियां है। जो भगवान के शरणागत है वह इन सब सिद्धियों को ठुकरा देता है। 
न योगसिद्धीरपुनर्भवं वा ।
वाञ्छन्ति यत्पादरज:प्रपन्ना: ॥ 
(भगवत 10.16.37)
महापुरुष को इन सब सिद्धियों की आवश्यकता ही नहीं होती है। महापुरुष की सिद्धि देखनी हो तो हमें यह देखना चाहिए कि एक संसारी जीव उनका सत्संग करके अंदर से बदल जाता है। वह संसार से विरक्त होकर भगवत अनुरागी हो जाता है। यह असली चमत्कार है। तो चमत्कार को दूर से ही नमस्कार करना है। महापुरुष की वाणी दिव्य होती है यदि हम उसका श्रवण करें तो वे शब्द अंतःकरण में बैठ जाते हैं। जैसे एक बात हमने बार-बार सुनी "हम शरीर नहीं आत्मा है "लेकिन कोई असर नहीं हुआ। यही वाक्य जब महापुरुष से सुनेंगे तो सीधा अंदर जाकर लगेगा और सोचने पर मजबूर करेगा कि बात तो बिल्कुल सही है। ये  दिव्य वाणी का प्रभाव होता है। गुरु की वाणी में प्रबल शक्ति होती है। 

सद्गुरू का क्या काम है?

गुरु का पहला काम यही होता है कि शिष्य को ठीक-ठीक तत्व ज्ञान कराना ताकि प्रैक्टिकल साधना ठीक ठीक हो सके। सद्गुरू तत्वदर्शी होता है, उनके पास अनुभव ज्ञान होता है इसलिए वह हमारी समस्त शंकाओं का संपूर्ण निराकरण कराते  हुए साधना पथ पर तेजी से आगे बढ़ाते हैं। यदि हम सद्गुरू का संग करें तो स्वत: ही संसार से वैराग्य और भगवान में अनुराग हो जाता है। जैसे ठंड लगने पर आग के पास जाने से गर्मी का एहसास होता है, वैसे ही सद्गुरु आध्यात्मिक चेतना का पुंज है, उनका संग करने  से संसार से वैराग्य और भगवान से अनुराग ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। जो अज्ञान रूपी अंधकार को निकाले और दिव्य ज्ञान, दिव्य प्रेम प्रदान करें ऐसे श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष बिना भगवान की कृपा से नहीं मिलते हैं। जब भगवान की कृपा होती है तो वे प्रारब्ध का फल बिना बताए गुरु के रूप में  देते हैं और उन गुरु पर पक्का विश्वास भी करा देते हैं। 

जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज लिखते हैं-
जो समझा दे श्रुति चार, उर भरा प्रेम रिझावर।
सोई है सद्गुरू सरकार, गुरु सोई ‘कृपालु’ सरकार।।
भावार्थ- “जो वेदों का सार जीव को समझा सके और जिसका ह्रदय भगवान के प्रेम से भरा हो, जिसने भगवान के प्रेम को प्राप्त करलिया हो वही सद्गुरू है।” 

गुरु के प्रति अंदर से श्रद्धा उत्पन्न करा देते हैं।  उन गुरु के द्वारा बताई गई साधना करते-करते जब अंत:करण की शुद्धि होगी और भगवान से पूर्ण  एकत्व होगा तब  गुरु कृपा करके भगवान की दिव्य योग माया शक्ति देगे जिससे माया निवृत्ति होगी और भगवान के दिव्य ज्ञान दिव्य प्रेम दिव्य आनंद से युक्त हो जाएंगे और अंत में देह त्यागने पर भगवान के दिव्य लोक में सदा सदा के लिए दिव्य सेवा प्राप्त करेंगे।