Witnessing the divine form of Bhagwan Jagannath at the temple, Adi Shankaracharya was struck by such profound inspiration that he composed Shree Jagannathashtakam (Śrī Jagannāthāṣṭakaṁ/ श्रीजगन्नाथाष्टकं). These eight verses, imbued with devotion, capture the essence of Bhagwan – his radiant Form, His divine Virtues, and His playful Pastimes. The description of the Ratha Yatra within the stotra is so exquisite that it enraptures all who recite or hear it. As the most popular stotra of Bhagwan Jagannath, the Shree Jagannathashtakam resonated with Chaitanya Mahaprabhu, who sang it during his pilgrimage. Reciting this potent Ashtakam with heartfelt devotion pleases Bhagwan Jagannath, purifies one's heart and attracts His grace. It fosters a spring of selfless and unwavering devotion within the devotee, making it a treasured offering – a gift that resonates deeply with Bhagwan Jagannath Himself.
कदाचित् कालिन्दी तट विपिन सङ्गीत तरलो
मुदाभीरी नारी वदन कमला स्वाद मधुपः
रमा शम्भु ब्रह्मामरपति गणेशार्चित पदो
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥१॥
kadācit kālindī-taṭa-vipina-saṅgīta ta ralo
mudābhīrī-nārī-vadana-kamalāśvāda-madhupaḥ
ramā-śambhu-brahmāmara-pati-gaṇeśārcita-pado
jagannāthaḥ svāmī nayana-patha-gāmī bhavatu me ॥1॥
हे प्रभु! जब आप परम आनंद में होते हैं, तब कालिंदी तट के निकुंजों में मधुर वेणु नाद द्वारा सबके मन को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। सभी ग्वाल-बाल और गोपिकायें आपकी ओर ऐसे मोहित होते हैं, जैसे कमल के फूल के मकरंद पर भंवरा आकर्षित होता है। आपके चरण कमल की सेवा देवी लक्ष्मी, ब्रह्मा, शिव, गणेश और देवराज इंद्र करते हैं। हे जगन्नाथ स्वामी! आप मेरे पथप्रदर्शक बने और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करें।
At the times when playful delight ripples through Your heart, Your flute weaves magic on the banks of the sacred Yamuna. Like a swarm of intoxicated bees drawn to the lotus's fragrant nectar, the Gopis abandon themselves to Your enchanting tune. Your lotus feet are worshipped by Lakshmi, Shambhu, Brahma, Indra, and Ganesh, all seeking Your grace. May Jagannath Swami, my guiding light, illuminate the path before my eyes.
भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिच्छं कटितटे
दुकूलं नेत्रान्ते सहचर-कटाक्षं विदधते ।
सदा श्रीमद्-वृन्दावन-वसति-लीला-परिचयो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ॥२॥
bhuje savye veṇuṁ śirasi śikhi-picchaṁ kaṭitaṭe
dukūlaṁ netrānte sahacara-kaṭākṣaṁ ca vidadhat
sadā śrīmad-vṛndāvana-vasati-līlā-paricayo
jagannāthaḥ svāmī nayana-patha-gāmī bhavatu me ॥2॥
श्री जगन्नाथ अपने बाएं हाथ में बांसुरी और सिर पर मोर पंख धारण किए हुए सजे-धजे खड़े हैं। कमर में पीत वस्त्र बंधा हुआ है। उनकी नेत्रों के कटाक्ष प्रेमी भक्तो को निहार कर आनंद प्रदान कर रहे हैं। वृंदावन में स्वयं द्वारा किए हुए लीलाओं का स्मरण करवा रहे है और स्वयं भी लीलाओ का आनंद ले रहे है। हे जगन्नाथ स्वामी! आप मेरे पथप्रदर्शक बने और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करें।
The flute rests in Your left hand, a peacock feather adorns Your crown, and a vibrant yellow cloth drapes around Your waist. With mischievous sidelong glances of Your loving eyes, You bring joy to Your devotees. Forever engaged in the divine pastimes of Vrindavan, You remind us of Your Leelas and revel in their eternal bliss. May Jagannath Swami, my guiding light, illuminate the path before my eyes.
महाम्भोधेस्तीरे कनक रुचिरे नील शिखरे
वसन् प्रासादान्तः सहज बलभद्रेण बलिना ।
सुभद्रा मध्यस्थः सकलसुर सेवावसरदो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे ॥३॥
mahāmbhodhes tīre kanaka-rucire nīla-śikhare
vasan prāsādāntaḥ sahaja-balabhadreṇa balinā
subhadrā-madhya-sthaḥ sakala-sura-sevāvasara-do
jagannāthaḥ svāmī nayana-patha-gāmī bhavatu me ॥3॥
विशाल सागर के किनारे, सूंदर नीलांचल पर्वत के शिखरों से घिरे अति रमणीय स्वर्णिम आभा वाले पुरुषोत्तम क्षेत्र श्री पूरी धाम में आप अपने बलशाली भ्राता बलभद्र जी और मध्य में बहन सुभद्रा जी के साथ विध्यमान होकर सभी देवताओं को अपनी सेवा का अवसर देते हो। हे जगन्नाथ स्वामी! आप मेरे पथप्रदर्शक बने और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करें।
Surrounded by the peaks of the beautiful blue Nilachal mountain, on the shores of the vast ocean of Purushottama Kshetra, where the Sands shine like Gold, You reside with Your powerful brother Balabhadra on one side and Your sister Subhadra in the centre. Even the Devas find purpose and joy in serving You in this blessed land. May Jagannath Swami, my guiding light, illuminate the path before my eyes.
कृपा पारावारः सजल जलद श्रेणिरुचिरो
रमा वाणी रामः स्फुरद् अमल पङ्केरुहमुखः ।
सुरेन्द्रैर् आराध्यः श्रुतिगण शिखा गीत चरितो
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥४॥
kṛpā-pārāvāraḥ sajala-jalada-śreṇi-ruciro
ramā-vāṇī-rāmaḥ sphurad-amala-paṅkeruha-mukhaḥ
surendrair ārādhyaḥ śruti-gaṇa-śikhā-gīta-carito
jagannāthaḥ svāmī nayana-patha-gāmī bhavatu me ॥4॥
जगन्नाथ स्वामी दया और कृपा के अथाह सागर है। सजल जलद श्रेणी के समान सुन्दर आपका रूप है। लक्ष्मी एवं सरस्वती को आनंद प्रदान करने वाले आप का मुखचंद्र पूर्ण खिले हुए उस कमल पुष्प के समान है जिसमे कोई दाग नहीं है। श्रुतियों ने देवता के आराध्य आप के गुणों का बखान किया है। हे जगन्नाथ स्वामी! आप मेरे पथप्रदर्शक बने और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करें।
Your compassion is boundless like an ocean, its depths overflowing with grace for Your devotees. Your beauty, too, is endless, mirroring the dark, water-laden rain clouds that promise life-giving rain. You bring delight to both Ramaa (Lakshmi) and Vani (Saraswati), for Your captivatingly charming face reflects the beauty of a flawlessly pure lotus in perfect bloom. Even the Suras (Devas) worship you, and the scriptures sing of your transcendental glories. May Jagannath Swami, my guiding light, illuminate the path before my eyes.
रथारूढो गच्छन् पथि मिलित भूदेव पटलैः
स्तुति प्रादुर्भावम् प्रतिपदमुपाकर्ण्य सदयः ।
दया सिन्धुर्बन्धुः सकल जगतां सिन्धु सुतया
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥५॥
rathārūḍho gacchan pathi milita-bhūdeva-paṭalaiḥ
stuti-prādurbhāvam prati-padam upākarṇya sadayaḥ
dayā-sindhur bandhuḥ sakala jagatāṁ sindhu-sutayā
jagannāthah svāmī nayana-patha-gāmī bhavatu me ॥5॥
जैसे ही आप अपने रथ पर आरूढ़ होकर प्रकट होते हैं, सड़कों पर भक्तों का एक आनंदित महासागर उमड़ पड़ता है। ब्राह्मण स्तुतियाँ गाकर आपकी महिमा का गुणगान करते हैं, उनकी स्तुतियाँ भक्तों के बीच गूंज उठती हैं। इस भव्य रथयात्रा के हर कदम के साथ, आपका करुणामय हृदय आपके भक्तों की ताल के साथ धड़कता है। आप करुणा के असीम सागर हैं, जगत के मित्र हैं, और सभी प्राणी आपके बच्चों के समान हैं। हे जगन्नाथ स्वामी! आप मेरे पथप्रदर्शक बने और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करें।
As You emerge mounted on Your chariot, the streets erupt with a joyous ocean of devotees. Brahmins raise their voices in Your praise, their Stutis echoing through the crowd. With every step of this grand procession, Your compassionate heart beats in rhythm with Your devotees. You are an endless ocean of compassion, a friend to the entire world, and all beings are like Your children, embraced by Your boundless love. May Jagannath Swami, my guiding light, illuminate the path before my eyes.
परंब्रह्मापीड़ः कुय-दलोत्फुल्ल-नयनो
निवासी नीलाद्रौ निहित-चरणोऽनन्त-शिरसि ।
रसानन्दी राधा-सरस-वपुरालिङ्गन-सुखो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथगामी भवतु मे ॥६॥
paraṁ-brahmāpīḍaḥ kuvalaya-dalotphulla-nayano
nivāsī nīlādrau nihita-caraṇo 'nanta-śirasi
rasānandī rādhā-sarasa-vapur-āliṅgana-sukho
jagannāthaḥ svāmī nayana-patha-gāmī bhavatu me ॥6॥
परब्रह्म ने स्वयं को संकुचित करके यह आपका दिव्य रूप धारण किया है, जिसमें आँखें पूर्ण खिले हुए कमल की पंखुड़ियों के समान हैं। इस संसार में, आप नीलाचल पर्वत पर निवास करते हैं, परंतु पारलौकिक जगत में, आपके चरण कमल अनंतदेव (शेषनाग) के सिर का शोभा बढ़ाते हैं। दिव्य प्रेम की मूर्ति राधारानी भी रस से परिपूर्ण आपके आलिंगन में एक अप्रतिम रस (आनंद) का अनुभव करती हैं। हे जगन्नाथ स्वामी! आप मेरे पथप्रदर्शक बने और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करें।
Supreme Brahman has condensed to create this Divine Form of Yours, in which the Eyes are like the Petals of a fully-blossomed Lotus. In this world, You reside on the Nilachal mountain, but in the world of transcendence, Your lotus feet shine brightly on the hooded head of Anantadev (Sheshnag). Even Radharani, the embodiment of divine love, discovers an ineffable Rasa (bliss) when enveloped in Your embrace made of bliss. May Jagannath Swami, my guiding light, illuminate the path before my eyes.
न वै याचे राज्यं न च कनक माणिक्य विभवं
न याचेऽहं रम्यां सकल जन काम्यां वरवधूम् ।
सदा काले काले प्रमथ पतिना गीतचरितो
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥७॥
na vai yāce rājyaṁ na ca kanaka-māṇikya-vibhavaṁ
na yāce 'haṁ ramyāṁ sakala jana-kāmyāṁ vara-vadhūm
sadā kāle kāle pramatha-patinā gīta-carito
jagannāthaḥ svāmī nayana-patha-gāmī bhavatu me ॥7॥
मैं न तो राज्य की कामना करता हूँ, ना ही स्वर्ण, आभूषण, कनक माणिक एवं वैभव की कामना कर रहा हूँ, न ही सुन्दर पत्नी की अभिलाषा है। मेरा एकमात्र अभिलाषा यह है की प्रमथ पति भगवान् शिव हर काल में जिन के गुण का कीर्तन श्रवण करते हैं वही जगन्नाथ स्वामी मेरे हृदय को भक्तिभाव से भर दें। हे जगन्नाथ स्वामी! आप मेरे पथप्रदर्शक बने और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करें।
Worldly desires hold no sway over me. Neither the allure of a kingdom, nor the glitter of gold and jewels, nor the beauty of a coveted bride hold any interest. My sole yearning, every moment of every day, is for Shree Jagannath. His stories, sung eternally by Shiva Himself, fill my heart with devotion. May Jagannath Swami, my guiding light, illuminate the path before my eyes.
हर त्वं संसारं द्रुततरम् असारं सुरपते
हर त्वं पापानां विततिम् अपरां यादवपते ।
अहो दीनेऽनाथे निहित चरणो निश्चितमिदं
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥८॥
hara tvaṁ saṁsāraṁ druta-taram asāraṁ sura-pate
hara tvaṁ pāpānāṁ vitatiṁ aparāṁ yādava-pate
aho dīne 'nāthe nihita-caraṇo niścitam idaṁ
jagannāthaḥ svāmī nayana-patha-gāmī bhavatu me ॥8॥
हे देवों के स्वामी, संसार में मेरी जो आसक्ति है उसको शीघ्र हर लीजिए। हे यदुपति! आसक्ति से जनित मेरे पाप कर्मो को हर लीजिए। आप दीन दुखियो के एकमात्र सहारा हो, जिसने आपके चरण कमलो में अपने को समर्पित कर दिया हो, जो इस संसार में भटककर गिर पड़ा हो, जिसे इस संसार सागर में कोई ठिकाना न हो, उसे केवल आप ही अपना सकते हो। हे जगन्नाथ स्वामी! आप मेरे पथप्रदर्शक बने और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करें।
O master of the Devas, You can effortlessly dismantle the vast ocean of worldly entanglements with Your divine grace. O King of the Yadavas, You possess the power to cleanse even the gravest of my sins utterly. May I, a humble soul seeking refuge, forever find solace at Your feet. May Jagannath Swami, my guiding light, illuminate the path before my eyes.
जगन्नाथाष्टकं पुन्यं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।
सर्वपाप विशुद्धात्मा विष्णुलोकं स गच्छति ॥९॥
jagannāthāṣṭakaṁ punyaṁ yaḥ paṭhet prayataḥ śuciḥ
sarva-pāpa-viśuddhātmā viṣṇu-lokaṁ sa gacchati ॥9॥
भक्तिभावपूर्ण होकर जगन्नाथाष्टकं का पाठ करने से अंतःकरण की शुद्धि होती है, सभी पाप नष्ट होते हैं और भगवान के दिव्य लोक की प्राप्ति होती है।
By sincerely reciting the Jagannathashtakam with devotion, the purification of the heart occurs, all sins are destroyed, and attainment of the divine abode of Bhagwan is achieved.
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