श्रीकृष्ण भक्तों को लिए शरदपूर्णिमा सर्वश्रेष्ठ पर्व है क्योकि शरदपूर्णिमा के दिन ही अनंत सौंदर्य, माधुर्य सुधा रस सिंधु रसिक शिरोमणि श्याम सुंदर ने रासेश्वरी श्री राधारानी का आश्रय लेकरअधिकारी जीवों के साथ महारास किया था अर्थात आंनद की जो अंतिम सीमा है , उस अंतिम सीमा वाले आनंद को अधिकारी जीवों को प्रदान किया था । हम सब साधकों के लिए इस पर्व का महत्वऔर भी बढ़ जाता है क्योंकि करुनाकारिणी, शरणागत भवतारिणी श्रीराधारानी ने प्रेमानंद प्रसार, ब्रजरस विस्तार व कलि प्रभाव संहार के लिए महारसिक के रूप में अपने कृपा रूप को भक्ति धाममनगढ़ में माँ भगवति की गोद मे प्रकट कर दिया । 5 अक्टूबर 1922 शरदपूर्णिमा की शुभ रात्रि को सभी साधकों के प्राण स्वरूप राधाकृष्ण भक्ति के मूर्तिमान स्वरूप भक्ति योग रसावतार हमारे प्रियगुरुदेव का प्राकट्य हुआ । ऐसा प्रतीत होता है श्री श्यामा श्याम ने जिस दिव्य प्रेम सुधा रस सिंधु में सौभाग्यशाली जीवों को निमज्जित किया, वही दिव्य प्रेम, गुरुवर और रसिकवर रूप में ‘कृपालु‘ नामसे भक्ति धाम मनगढ़ में अवतरित हो गया ।
धन्य हैं हम सब कि ऐसे सद्गुरु का मार्गदर्शन हमें प्राप्त है । हम तन मन धन हरि गुरु सेवा में ही समर्पित करने का संकल्प लें। हर क्षण उनका ही स्मरण हो । गुरुदेव के सिद्धांत के अनुसार ही जीवनव्यतीत हो । हरि गुरु में अभेद मान कर उनकों सदा अपने रक्षक रूप में अनुभव करने का अभ्यास करें।
अद्भुत है कृपालु गुरुदेव की कृपा का तरीका, सोते – जागते, खाते–पीते, उठते – बैठते उनका बस एक ही लक्ष्य होता था– जीव कल्याण । अनवरत कृपा की वर्षा करना, यही उनका स्वभाव था । इसपावन पर्व पर श्री गुरुदेव की कृपा का अनुभव करते हुए अनंत काल तक उनके सानिध्य की अभिलाषा के साथ उनके कोमल चरणारविन्दों में कोटि कोटि प्रणाम ।