जीवन में दृढ़ संकल्प का बहुत महत्व होता है। उसी पर हमारे जीवन की आधारशिला टिकी होती है। जब हम किसी कार्य को करने की तीव्र इच्छा बनायेंगे, उसके प्रति दृढ़ संकल्प भी बनाना होगा। जब संकल्प दृढ़ होगा तो, तीव्र प्रयत्न होगा और हम वैसे ही बन जायेंगे। अब अगर हमारी इच्छा मंद मंद हो, निर्णय भी कमजोर होगा और प्रयत्न भी मंद मंद होगा, परिणाम में कुछ हाथ न आयेगा। ये भलीभांति समझ लें कि निश्चय को दृढ़ करने से जीवन में परिवर्तन आता है, जीवन बनता है। कोई भी ज्ञान उपयोग में तब आता है जब हम उस ज्ञान के अनुसार निर्णय लेते हैं। उस पर दृढ़तापूर्वक चलने से असंभव कार्य भी संभव हो जाता है और जीवन बदल जाता है। इतिहास में कई उदाहरण हैं, जिसमे दृढ़ संकल्प के आधार पर साधारण जीव महापुरुष बन गए जैसे संत तुलसीदास।
गोस्वामी तुलसीदासजी का जीवन परिवर्तन कैसे हुआ?
तुलसीदासजी का जीवन सिर्फ एक निर्णय से बदल गया। वे पहले घोर संसारी, पत्नी आसक्त थे। एक बार उनकी पत्नी मायके गई थी, उनसे पत्नी के बिना रहा न गया। वे अपनी पत्नी से मिलने घनघोर वर्षा में, रात में ही निकल पड़े। रास्ते में नदी पड़ती थी जो वर्षा के कारण उफान पर थी। उन्होंने नौका का प्रयास किया किंतु अधिक रात होने से कुछ साधन नहीं मिल पाया। पत्नी से मिलना उनका लक्ष्य था, सो एक लाश को लकड़ी का डंडा समझ कर नदी पार कर गए और तो और पत्नी से मिलने की इतनी उत्कंठा कि सांप को रस्सी समझ कर, उसके सहारे पत्नी के कक्ष में पहुंच गए। किंतु उनकी पत्नी खुश होने के स्थान पर क्रोधित हो गई और जो उन्होंने कहा उससे तुलसीदास जी का जीवन बदल गया।पत्नी ने कहा, " जितनी आसक्ति मुझमें है, उतनी भगवान में कर लेते तो आपको भगवतप्राप्ति हो जाती।" उन्हें ये वाक्य अंतःकरण में ऐसा लगा कि उन्होंने निर्णय ले लिया कि धिक्कार है ऐसे जीवन और ऐसी बुद्धि को, अब तो भगवान ही मेरे हैं। उस निर्णय पर दृढ़तापूर्वक चल कर महापुरुष बन गए और विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ "रामचरितमानस" लिखा इसे और अच्छे से समझने का प्रयास करते हैं।
शारीरिक बुद्धि, विश्लेषणात्मक बुद्धि, भावात्मक बुद्धि और आध्यात्मिक बुद्धि
बुद्धि को हम चार भागों में बांट सकते हैं। शारीरिक बुद्धि, विश्लेषणात्मक बुद्धि, भावात्मक बुद्धि और आध्यात्मिक बुद्धि। सर्वप्रथम बाल्यावस्था में शारीरिक बुद्धि विकसित होती है, बाकी तीनों प्रकार सुप्त रहते हैं। इसमें बालक कैसे बैठना, खड़े होना, दौड़ना , और तरह से शरीर का उपयोग कैसे करना सीखता है। कुछ बड़ा होने पश्चात विश्लेषणात्मक बुद्धि का विकास होता है, जिसमें वह हर प्रकार की शिक्षा प्राप्त करता है। किशोरावस्था में भावात्मक बुद्धि का विकास व उपयोग होता है। स्वयं को समझना, अन्य लोगो से संपर्क करना, भावात्मक रूप से सबके व्यवहार समझना आदि। अंतिम आध्यात्मिक बुद्धि सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। जिसमें मेरा लक्ष्य क्या है, संसार में मैं क्यों आया हूं, मेरे जीवन के मूल्य क्या हैं, क्या सही है क्या गलत है पर मनन होता है। समय के साथ धीरे धीरे बुद्धि का विकास होता है। उसका उपयोग कैसे और क्या करना है, इसी पर हमारा जीवन निर्भर करता है। सही सही बुद्धि का उपयोग, सही निर्णय और दृढ़तापूर्वक पालन हमारे जीवन को उच्चतम स्तर तक ले जा सकता है।